“तुझे देखता हूँ”.....
तुझे देखता हूँ तो कोई ‘अपनासा’लगता है
शायद मैं गहरीं नींद में हुँ, ‘सपना’सा लगता है
आँखो से ‘चमकती’रोशनी, कुछ महसूस कराती है
निगाहों की ‘ख़ामोशी’में कोई राज गहरा लगता है
ओठों पर जो हलकिसी ‘मुस्कान’उभर रही है
ज़ुबान पर शायद आनेवाला मेरा ‘नाम’ लगता है
‘मन’ में तुझे पाने की बड़ी कोशिश हो रही है
कुछ तो ज़रूर पिछले जनम का, ‘रिश्ता’सा लगता है
कब चलें आओगे, इस समशान ‘वीरान’गलियों में
तेरे बग़ैर ज़िंदगी में कोई ‘ख़्वाब’अधूरा सा लगता है
-राम
तुझे देखता हूँ तो कोई ‘अपनासा’लगता है
शायद मैं गहरीं नींद में हुँ, ‘सपना’सा लगता है
आँखो से ‘चमकती’रोशनी, कुछ महसूस कराती है
निगाहों की ‘ख़ामोशी’में कोई राज गहरा लगता है
ओठों पर जो हलकिसी ‘मुस्कान’उभर रही है
ज़ुबान पर शायद आनेवाला मेरा ‘नाम’ लगता है
‘मन’ में तुझे पाने की बड़ी कोशिश हो रही है
कुछ तो ज़रूर पिछले जनम का, ‘रिश्ता’सा लगता है
कब चलें आओगे, इस समशान ‘वीरान’गलियों में
तेरे बग़ैर ज़िंदगी में कोई ‘ख़्वाब’अधूरा सा लगता है
-राम
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