“मौसम बदलते हीं....”
मौसम बदलते ही
वो हमें भुलाने लगें,
धीरे-धीरे ‘नज़दीकियों’ को,
दुरियाँ बनाने लगें
‘बहतीं’हवाओं का
क्या भरोसा;
कब कहाँ, अपना
रूख बना लें....
खुली ‘फ़िज़ाओं’का
क्या ? भरोसा
कब कहाँ अपना,
‘जलवा’ दिखा दें......
‘हरकतों’से अपनी,
बेवक़ूफ़ बनाने लगे
धीरे-धीरे नज़दीकियों को
दुरियाँ बनाने लगें.......
-राम
मौसम बदलते ही
वो हमें भुलाने लगें,
धीरे-धीरे ‘नज़दीकियों’ को,
दुरियाँ बनाने लगें
‘बहतीं’हवाओं का
क्या भरोसा;
कब कहाँ, अपना
रूख बना लें....
खुली ‘फ़िज़ाओं’का
क्या ? भरोसा
कब कहाँ अपना,
‘जलवा’ दिखा दें......
‘हरकतों’से अपनी,
बेवक़ूफ़ बनाने लगे
धीरे-धीरे नज़दीकियों को
दुरियाँ बनाने लगें.......
-राम
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