Saturday, 5 May 2018

मौसम बदलते हीं....”

मौसम बदलते ही 
वो हमें भुलाने लगें,
धीरे-धीरे ‘नज़दीकियों’ को,
दुरियाँ बनाने लगें

        
          ‘बहतीं’हवाओं का 
          क्या भरोसा;
          कब कहाँ, अपना
          रूख बना लें....

खुली ‘फ़िज़ाओं’का 
क्या ? भरोसा
कब कहाँ अपना,
‘जलवा’ दिखा दें......


            ‘हरकतों’से अपनी,
            बेवक़ूफ़ बनाने लगे 
            धीरे-धीरे नज़दीकियों को 
            दुरियाँ बनाने लगें.......



-राम 

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