“एक बेबस औरत”.....(दिल में बेचैनी और आँखो में पानी)
एक सीधा सा सवाल है मेरा कुछ लोगों से ....
क्या वाक़ई हम अपनी बेटी, बहनों से सच्चे दिल से प्यार करते है ??
अगर करते है तो.......क्या उसे अपने ज़िंदगी के फ़ैसले लेने का हक़ भी हम देते है ??
जी नहीं, ज़्यादा तर लोंग ऐसा हरगिज़ नहीं करते, उनको लगता है के फ़ैसले लेने की अक़्ल उसमें है ही नहीं
क्या अच्छा ? क्या बुरा ? उसको कुछ नहीं समझता ( बाक़ी सब इनको ही समझता है )
मैं दावे के साथ कहता हु की लड़कियाँ लड़कों की तुलना में बेहतर फ़ैसले लेती है सोच समझकर आगे बढ़ती है और उसके लिए हुए निर्णय अच्छें ही होते है, लेकिन इस बात को हम कभी नहीं मानेंगे.
मैं दावे के साथ कहता हु की लड़कियाँ लड़कों की तुलना में बेहतर फ़ैसले लेती है सोच समझकर आगे बढ़ती है और उसके लिए हुए निर्णय अच्छें ही होते है, लेकिन इस बात को हम कभी नहीं मानेंगे.
हम आज जो मर्ज़ी बोलें की हिंदुस्तान बहोत तरक़्क़ी कर रहा है, आगे बढ़ रहा है इसमें कोई शक नहीं की
हर मामलों में हमने काफ़ी ऊँचाइयोंको छूवाँ है और कामयाबी के नयें आयाम खड़े किए है लेकिन , लेकिन.........
आज भी गाँव शहरों में हमारे देश की औरतें बेहिसाब ज़ुल्म सहती है और वो भी अपने ही लोगों से ,
औरतों, बहनों के मामले में हम इसे अपने नाक का सवाल बना लेते है.....
हर मामलों में हमने काफ़ी ऊँचाइयोंको छूवाँ है और कामयाबी के नयें आयाम खड़े किए है लेकिन , लेकिन.........
आज भी गाँव शहरों में हमारे देश की औरतें बेहिसाब ज़ुल्म सहती है और वो भी अपने ही लोगों से ,
औरतों, बहनों के मामले में हम इसे अपने नाक का सवाल बना लेते है.....
कोनसी नाक ? किसकी नाक ? कैसी नाक ?? पता नहीं
कहीं पर सुना है के जो समाज औरतों, बेटियों की इज़्ज़त करना नहीं जानता उस समाज का भविष्य कभी नहीं सुधर सकता
औरत की इज़्ज़त करने उसे आज़ादी देने में ऐसी कोनसी परेशानी होती है हमें पता नहीं, क्यूँ उसे हम इतना कमज़ोर मानते है ?
क्यूँ आज भी अपने हक़ के फ़ैसले नहीं ले सकती औरत ?
क्यूँ उसे आज़ादी से जीने का हक़ नहीं देता ये समाज ?
क्यूँ उसे आज भी अपनी ज़िंदगी और ख़ुशियों को लेकर लड़ना झगड़ना पड़ता है
आख़िर क्यूँ ?????
इस क्यूँ का जवाब उस औरत को ही ढूँढना पड़ेगा , अपने हक़ की लड़ायीं उसे ख़ुद लड़नी होगी
अन्याय और शोषण के ख़िलाफ़ उसे ख़ुद खड़ा होना पड़ेगा नहीं तो ये समाज उसे बदचलन कह कर कहीं दफ़ना देगा
आज भी हमारे समाज में झूठी शान और इज़्ज़त के रखवाले ज़िंदा है जो ना तो औरत का हृदय समजते है ना उसके दर्द और तकलीफ़ों को समजते है. वो बस अपनी इज़्ज़त के लिए उसकी बली चढ़ा देते है और बेचारी कुछ ना कहते हुए सब सह लेती है क्यूँ ? क्यूँ की उसे इस बात का इल्म रहता है की वो कुछ ग़लत क़दम उठा भी ले तो अपने माँ-बाप , ख़ानदान की इज़्ज़त ना चली जाए
उसे सिर्फ़ डराकर धमकाकर रखा जाता है और बेचारी डर जाती है
उसने कितने ना जाने अनगिनत कष्ट उठाए होंगे इन्हें पता भी नहीं होगा पर अपने मुँह से एक लफ़्ज़ भी अपने घरवालों से कभी नहीं कहा क्यूँ के वो जानती थी , बताने से उन्हें तकलीफ़ होगी ? रोज़ की तकलीफ़ कब तक कह सकती है और बताने से कुछ होगा ही नहीं तो फिर क्या बताना....
उस इंसान को बाप बनने का हक़ है जो अपने बच्चों की तकलीफ़ उनकी ख़ुशी को समझता हो
उस इंसान को भाई बनने का हक़ है जो कलाई पर बांधी राखी के मतलब को समझता हो अपने बहन की रक्षा करता हो उस इंसान को पति बनने का हक़ है जो औरत के दिल को समझें, उसे प्यार करें , उसके सुख दुःख में उसके साथ खड़ा हो
और उस इंसान को मर्द बनने का पूरा हक़ है जो औरत को अच्छी नज़र से देखें उसकी इज़्ज़त करें,उसे पूरा सम्मान दे
किसी ने ठीक कहाँ है के हक़ माँगने से अगर नहीं मिलता तो उसे छिनने में कोई बुराई नहीं है....
-राम
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