Monday, 4 June 2018

“ख़ामोश तन्हाई सी तुम”

शोर की इस भीड़ में ख़ामोश तन्हाई सी तुम
ज़िंदगी है धूप, तो मद-मस्त पुर्वाई सी तुम
आज मैं बारिश में जब भीगा तो तुम ज़ाहिर हुईं
जाने कब से रह रही थीं मुझ में अंगड़ाई सी तुम
चाहे महफ़िल में रहूँ चाहे अकेले में रहूँ
गूँजती रहती हो मुझ में शोख़ शहनाई सी तुम
लाओ वो तस्वीर जिस में प्यार से बैठे हैं हम
मैं हूँ कुछ सहमा हुआ सा, और शरमाई सी तुम

मैं अगर मोती नहीं बनता तो क्या बनता 'कुँवर' 
हो मिरे चारों तरफ़ सागर की गहराई सी तुम

-कुँवर बेचैन

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