“अक्सर अपनी क़िस्मत”
“अक्सर अपनी क़िस्मत ‘बेवफ़ाई’कर जाती है
“अक्सर अपनी क़िस्मत ‘बेवफ़ाई’कर जाती है
तुम तो फिर भी ग़ैर थे
कई बार ख़ुद हाथों से अपना ‘घर’जलाया है मैंने
तुम तो फिर भी ग़ैर थे
अब इसे उसे न जाने किसे
ज़िम्मेवार ठहराऊ, मेरी ‘फ़ितरत’में नहीं है ,
अपने आप से ‘शिकस्त’खाई है
तुम तो फिर भी ग़ैर थे.
कोई ‘अफ़सोस’नहीं है मुझे मेरे दोस्त
तेरे सब गुनाह ‘माफ़’ करता हु
ज़िंदगी के अगले सफ़र पर निकला हुँ,
खुलें दिल से सारे फ़ैसले ‘स्वीकार’ करता हूँ,
तुम ख़ुश रहो, दिल से यहीं माँगा है मैंने ‘रब’से,
मेरे ग़म तो बेहिसाब थे,
अपने ‘बरबादीं’की कहानी तो ख़ुद ही लिखीं थी मैंने,
तुम तो फिर भी ग़ैर थे...!!!
-राम
अब इसे उसे न जाने किसे
ज़िम्मेवार ठहराऊ, मेरी ‘फ़ितरत’में नहीं है ,
अपने आप से ‘शिकस्त’खाई है
तुम तो फिर भी ग़ैर थे.
कोई ‘अफ़सोस’नहीं है मुझे मेरे दोस्त
तेरे सब गुनाह ‘माफ़’ करता हु
ज़िंदगी के अगले सफ़र पर निकला हुँ,
खुलें दिल से सारे फ़ैसले ‘स्वीकार’ करता हूँ,
तुम ख़ुश रहो, दिल से यहीं माँगा है मैंने ‘रब’से,
मेरे ग़म तो बेहिसाब थे,
अपने ‘बरबादीं’की कहानी तो ख़ुद ही लिखीं थी मैंने,
तुम तो फिर भी ग़ैर थे...!!!
-राम
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