Thursday, 21 June 2018

वहीं से निकलकर...”

वहीं से निकलकर वहीं पर पहुँच गए 
ज़िद थी आसमान छूने की,गालियों मे बिखर गए

वो दिल से नहीं चाहतें, हम-तुम मिल जाए
चेहरें पर साफ़ लिखा था धोखा, हमसे धोखा कर गए

बेगुनाह आँसुओ की क़ीमत तो चुकानी पड़ती हैं
वक़्त क़हर बन कर टूटता हैं,तब ज़िंदगी मिटानी पड़ती हैं

हमें कोई ख़्वाहिश नहीं थी ख़ुदगर्ज़ ज़माने जैसी,
बस मोहब्बत के मारें थे, मोहब्बत के लिए मिल गए

इक बात बता दूँ उन्हें, इश्क़ पर कोई ज़ोर नहीं चलता
ये वो ख़ामोश तूफ़ान हैं, जिसका कोई शोर नहीं होता...


-राम









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