Tuesday, 26 June 2018

दिलों में आग लबों पर गुलाब रखते हैं
सब अपने चेहरों पे दोहरी नक़ाब रखते हैं
हमें चराग़ समझ कर बुझा पाओगे
हम अपने घर में कई आफ़्ताब रखते हैं
बहुत से लोग कि जो हर्फ़-आशना भी नहीं
इसी में ख़ुश हैं कि तेरी किताब रखते हैं
ये मय-कदा है वो मस्जिद है वो है बुत-ख़ाना
कहीं भी जाओ फ़रिश्ते हिसाब रखते हैं
हमारे शहर के मंज़र देख पाएँगे
यहाँ के लोग तो आँखों में ख़्वाब रखते हैं

-राहत इंदौरी साहब

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