Wednesday, 6 June 2018

“निगाहें मिलाकर किया इस दिल को ज़ख़्मी
फिर अदाएँ दिखाकर सितम ढा रहें हो,
वफ़ाओं का क्या? ख़ूब बदला दिया तुमने 
तड़पता हुआ तनहा छोड़कर जा रहें हो...”

-राम 



“दुनियाँ के सारे सितम आकर
 हमपर ही क्यूँ ? बरसते हैं
वो हमारें लियें, हम उनके लिए 
आजकल-पल पल तरसतें हैं....”

-राम 

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