“कल रात जब”
कल रात जब बारिश में ‘अकेला’भीग रहा था मैं
साथ बितायें उन हसीं ‘लमहों’को गिन रहा था मैं
वो बरसात की बूँदों का रुक रुक कर बरसना
बेवजह बादलों का ‘गरजना’ सुन रहा था मैं
तेरा होले से,धीरे से,चुपके से ‘क़रीब’ आ जाना
पास आकर,तेरी बेताब ‘धड़कने’गिन रहा था मैं
भीगीं हुई तेज़ तूफ़ान ‘आँधी’की तरहा
कब छूके गुज़री हो तुम,पता कर रहा था मैं
मेरा वक़्त वहीं ‘ठहर’गया जहाँ, तुम छोड़ गये,
रातों को उठ-उठ के, खिड़की से तुम्हें ‘ढूँढ’रहा था मैं
-राम
कल रात जब बारिश में ‘अकेला’भीग रहा था मैं
साथ बितायें उन हसीं ‘लमहों’को गिन रहा था मैं
वो बरसात की बूँदों का रुक रुक कर बरसना
बेवजह बादलों का ‘गरजना’ सुन रहा था मैं
तेरा होले से,धीरे से,चुपके से ‘क़रीब’ आ जाना
पास आकर,तेरी बेताब ‘धड़कने’गिन रहा था मैं
भीगीं हुई तेज़ तूफ़ान ‘आँधी’की तरहा
कब छूके गुज़री हो तुम,पता कर रहा था मैं
मेरा वक़्त वहीं ‘ठहर’गया जहाँ, तुम छोड़ गये,
रातों को उठ-उठ के, खिड़की से तुम्हें ‘ढूँढ’रहा था मैं
-राम
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