“ये क्या ? हो गया तुझको”
ये क्या? हो गया तुझको और मुझको
क्यूँ ख़ाली-ख़ाली लगतीं ज़िंदगी हमको ?
मौत ने ‘आवाज़’दी और तुम चले गए
बगीचों के सबसे ख़ूबसूरत ‘पंछी’उड़ गए
तूने सिखाया कितनों को ‘हुनर’जीने का
‘मुश्ताक़’तू भी और मैं भी था जीने का
फ़िक्र का धूवाँ कहूँ या ‘वहशत’ ज़िंदगी की
क्यूँ थमता नहीं ‘सिलसिला’आख़िर मरने का ?
(भय्यूजी महाराज देशमुख को मेरी तरफ़ से भावभीनी श्रधांजलि...!!!
उनकी दर्दनाक मौत के बाद याद में लिखी हुई ग़ज़ल उनके पावन चरणों में अर्पण...!!!)
-राम
ये क्या? हो गया तुझको और मुझको
क्यूँ ख़ाली-ख़ाली लगतीं ज़िंदगी हमको ?
मौत ने ‘आवाज़’दी और तुम चले गए
बगीचों के सबसे ख़ूबसूरत ‘पंछी’उड़ गए
तूने सिखाया कितनों को ‘हुनर’जीने का
‘मुश्ताक़’तू भी और मैं भी था जीने का
फ़िक्र का धूवाँ कहूँ या ‘वहशत’ ज़िंदगी की
क्यूँ थमता नहीं ‘सिलसिला’आख़िर मरने का ?
(भय्यूजी महाराज देशमुख को मेरी तरफ़ से भावभीनी श्रधांजलि...!!!
उनकी दर्दनाक मौत के बाद याद में लिखी हुई ग़ज़ल उनके पावन चरणों में अर्पण...!!!)
-राम
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