‘ग़लत समझा’
कई बार हमने ‘ज़िंदगी’को ग़लत समझा
सही ‘वक़्त’ ग़लत और ग़लत सही समझा
सुनते थे के, मयखानों में ही ‘अक्सर’शराबी मिलते है
देखा तो शरीफ़ शराबी और शराबी को शरीफ़ समझा
अपने लिए ज़माने की ‘नियत’कभी ठीक नहीं थी,
फिर भी ज़माने को हमेशा अपने ‘क़रीब’ समझा,
दुनिया की ‘तकलीफ़ों’को सुलझाने चलें थे
आपनो की नज़रों ने ही हमें अपना ‘दुश्मन’ समझा,
‘सच्चाई’को खुदा मान रक्ख़ा था हमने
लोगों ने हमेशा ‘झूँठ’समझा....!!!
-राम
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