Saturday, 24 March 2018

ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा
क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा
अपने साए से चौंक जाते हैं
उम्र गुज़री है इस क़दर तन्हा
रात भर बातें करते हैं तारे
रात काटे कोई किधर तन्हा
डूबने वाले पार जा उतरे
नक़्श-ए-पा अपने छोड़ कर तन्हा
दिन गुज़रता नहीं है लोगों में
रात होती नहीं बसर तन्हा
हम ने दरवाज़े तक तो देखा था
फिर जाने गए किधर तन्हा

Written By-Gulzar Sahab

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