हम हुये, तुम हुये के मीर हुये,
उसकी जुल्फो के सब असीर हुए (बंदी)
जीन जीन को था ऐ इश्क का आजार,
हमारे साथी सभी बिमार मर गए....!!
-मोहम्मद मीर
जो लोग जान बुझकर नादान बन गए
मेरा खयाल है के वोह इंसान बन गए...!
-हमीद
घर से निकला तो फिर घर को क्या देखतां,
कौन था जो मेरा रास्ता देखतां,
एक कदम भी ना उठता तेरी राह में,
मैं अगर राह का फसला देखतां....!!!
-अंजान
"हम खुदा के कभी काईल हि न थे,
उनको देखा तो खुदा याद आया..."
- अंजान
उसकी जुल्फो के सब असीर हुए (बंदी)
जीन जीन को था ऐ इश्क का आजार,
हमारे साथी सभी बिमार मर गए....!!
-मोहम्मद मीर
जो लोग जान बुझकर नादान बन गए
मेरा खयाल है के वोह इंसान बन गए...!
-हमीद
घर से निकला तो फिर घर को क्या देखतां,
कौन था जो मेरा रास्ता देखतां,
एक कदम भी ना उठता तेरी राह में,
मैं अगर राह का फसला देखतां....!!!
-अंजान
"हम खुदा के कभी काईल हि न थे,
उनको देखा तो खुदा याद आया..."
- अंजान