‘ज़िंदगी के दौर पर’
जहाँ से शुरू की थी ज़िंदगी, रास्तों में मिलते गए लोग
मैं तो ख़ैर ‘दोस्त’ बनता गया, दुश्मन बन गए लोग...
‘क्यूँ ?भरोसा’ कर गए थे बेग़ाने उन बहारों पर,
‘अहसानमंद’ होकर फिर, फ़रेब कर गए लोग...
‘पराया’नहीं माना था , किसी भी अनजान चलते‘मुसाफ़िर’ को
क्यूँ मुझको, मुझसे पराया कर गए लोग....
कह रहे थे, ‘हमसफ़र’ बने रहेंगे हर मुश्किल में ता उम्र
दो ‘क़दम’ साथ होकर फिर साथ छोड़ गए लोग....
मैं चीख़ता चिल्लाता रहा के मुझे जीने दो ,
हर पल ‘लूटकर ‘ख़ामोश रह गए लोग....
-राम
जहाँ से शुरू की थी ज़िंदगी, रास्तों में मिलते गए लोग
मैं तो ख़ैर ‘दोस्त’ बनता गया, दुश्मन बन गए लोग...
‘क्यूँ ?भरोसा’ कर गए थे बेग़ाने उन बहारों पर,
‘अहसानमंद’ होकर फिर, फ़रेब कर गए लोग...
‘पराया’नहीं माना था , किसी भी अनजान चलते‘मुसाफ़िर’ को
क्यूँ मुझको, मुझसे पराया कर गए लोग....
कह रहे थे, ‘हमसफ़र’ बने रहेंगे हर मुश्किल में ता उम्र
दो ‘क़दम’ साथ होकर फिर साथ छोड़ गए लोग....
मैं चीख़ता चिल्लाता रहा के मुझे जीने दो ,
हर पल ‘लूटकर ‘ख़ामोश रह गए लोग....
-राम
Wah Wah....
ReplyDeleteThanks.
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ReplyDeleteNice lines 👌👍
ReplyDeleteSuperb sir
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