पलकों के किनारे...
पलकों के किनारे जो भिगोयें नहीं
वो समजते हैं के हम ‘रोए’ नहीं
वो, पुछते है हमें के ख़्वाबों में किसे देखते हो,
और हम है के एक ‘ज़माने’ से सोए नहीं....!!
-राम
हमपर थोड़ा ‘रहम’ किया होता ,
निगाहों को अपने कहीं और मोड़ा होता
‘आग’ लगानी थी तुमको बेशक लगा देते,
लगा ने से पहले ,कम से कम
थोड़ा पानी तो बरसाया होता ....!!
-राम
पलकों के किनारे जो भिगोयें नहीं
वो समजते हैं के हम ‘रोए’ नहीं
वो, पुछते है हमें के ख़्वाबों में किसे देखते हो,
और हम है के एक ‘ज़माने’ से सोए नहीं....!!
-राम
हमपर थोड़ा ‘रहम’ किया होता ,
निगाहों को अपने कहीं और मोड़ा होता
‘आग’ लगानी थी तुमको बेशक लगा देते,
लगा ने से पहले ,कम से कम
थोड़ा पानी तो बरसाया होता ....!!
-राम
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