“ज़िन्दगी तेरे हर रूप को देखा...”
ज़िन्दगी हमने तेरे हर ‘रूप’ को देखा
ठंडी छांव और कड़ी धूप को देखा
‘मुसीबतों’को ज़रा आज़मा रहा था मैं
किरदारों के कितने ‘रंग’बदलते देखा
‘सबर’ करती ये दुनिया तो बता देता
हमने क्या समझा ? तुमने क्या समझा ?
किसी को दुःख पहुँचाना मेरा ‘मक़सद’ नहीं
बस ‘ज़रिया’बनना चाहता हुँ तुम्हारी ख़ुशियों का
रंग-रूप की चाहत से ऊपर उठ चूका हु मैं
जब बेचैन-तनहा सी धड़कतीं रूहों को देखा
हर दिल को ‘अज़ीज़’ समझकर जिता हु मैं
हर किसी को दिल से इज़्ज़त,प्यार देता हूँ मैं
मेरी फ़ितरत में नहीं किसी से ‘धोखा’करू
मैंने जीवन को तमाम ‘संभावनाओ’की नज़र से देखा
- राम
ज़िन्दगी हमने तेरे हर ‘रूप’ को देखा
ठंडी छांव और कड़ी धूप को देखा
‘मुसीबतों’को ज़रा आज़मा रहा था मैं
किरदारों के कितने ‘रंग’बदलते देखा
‘सबर’ करती ये दुनिया तो बता देता
हमने क्या समझा ? तुमने क्या समझा ?
किसी को दुःख पहुँचाना मेरा ‘मक़सद’ नहीं
बस ‘ज़रिया’बनना चाहता हुँ तुम्हारी ख़ुशियों का
रंग-रूप की चाहत से ऊपर उठ चूका हु मैं
जब बेचैन-तनहा सी धड़कतीं रूहों को देखा
हर दिल को ‘अज़ीज़’ समझकर जिता हु मैं
हर किसी को दिल से इज़्ज़त,प्यार देता हूँ मैं
मेरी फ़ितरत में नहीं किसी से ‘धोखा’करू
मैंने जीवन को तमाम ‘संभावनाओ’की नज़र से देखा
- राम
व्वा
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