“कुछ अब भी बाक़ी...”
कुछ अब भी बचा हैं क्या ज़रा ढूँढ लेना
कोई सवाल अब भी बाक़ी हो तो ज़रा ढूँढ लेना
तुम चाहतें आख़िर क्या हो ???
शायद तुम्हें मालूम नहीं,
कितने बेवक़ूफ़ बन रहें हो
कोई अंदाज़ा हीं नहीं...!!
अपनों की थोड़ी तो ‘क़द्र’करों
‘भरोसा’किसी का इतना मत तोड़ों
उसका ‘यक़ीन’था,के तुम उसका साथ दोगे,
किसी के यक़ीन को इतना भी मत तोड़ो...!!!
चाहें जो मर्ज़ी बहाने बना लो
जितना चाहें और हमें सज़ा’दो
हौसलें ‘मोहब्बत’ के तोड़ पाना तुम्हारे बस की बात नहीं
सच्चे इश्क़ की आग हैं, ‘रोक’ पाना किसी के बस की बात नहीं
कोई और नई ‘तरकीब’मिलती हैं तो ढूँढ लेना
कोई ‘नायाब’ नया बहाना ढूँढ लेना
तुम चाहकर भी रोक नहीं पाओगे
इश्क़ वो आतिशी ‘सैलाब’ है,
लाख कोशिशें करो मिटाने की,
तुम मिटाने से भी, मिटा न पाओगे...!!!
-राम